काम का बढ़ता दबाव और समय पर वरिष्ठ चिकित्सकों की सेवा नहीं मिलने से बढ़ रही है बच्चों की मौतें

विशेषज्ञ चिकित्सकों की भरपूर उपलब्धता और संसाधनों के मामले में बेहतरीन सुविधाओं के बावजूद जोधपुर के मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग में बच्चों की मौत का क्रम बरकरार है। दिसम्बर माह में ही 146 बच्चों की मौत हो जाने के बाद मामले की पड़ताल में सामने आया कि इस विभाग पर काम का दबाव बढ़ता जा रहा है। वहीं दूर दराज से यहां आने वाले बीमार बच्चों को तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सकों के माध्यम से इलाज नहीं मिल पाता है। वरिष्ठ चिकित्सक ओपीडी में नहीं बैठते। वहीं विभागाध्यक्ष सहित तीन डॉक्टर स्वयं के अस्पताल चला रहे है। ऐसे में उनका फोकस सरकारी के बजाय अपने अस्पताल पर अधिक रहता है। साथ ही वार्डों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। आज जिला कलेक्टर ने भी उम्मेद अस्पताल का दौरा कर व्यवस्थाओं में सुधार के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि मैं यहां की व्यवस्थाओं से संतुष्ट नहीं हूं। यहां काफी सुधार की गुंजाइश है।


इस कारण हो रही है मौतें
मेडिकल कॉलेज के कुछ चिकित्सकों के साथ इस मसले पर विस्तार से चर्चा में यह बात उभर कर सामने आई कि गंभीर रूप से बीमार बच्चों के कई बार अस्पताल तक पहुंचने में काफी विलम्ब हो जाता है। दूरदराज के गांवों में रहने वाले लोग पहले अपने स्तर पर घरेलू इलाज करते है। इसके बाद स्थिति में सुधार नहीं होने पर वे उसे जिला अस्पताल लेकर जाते है। जिला अस्पताल में प्रारम्भिक इलाज कर गंभीर रूप से बीमार बच्चों को अमूमन जोधपुर रैफर कर दिया जाता है। यहां पहुंचने तक उनकी स्थिति और भी बिगड़ जाती है। यहां ओपीडी में वरिष्ठ चिकित्सकों नहीं बैठते है। महज मेडिकल ऑफिसर के भरोसे ओपीडी चलती है। ऐसे में गंभीर बीमार बच्चों को हाथों विशेषज्ञ चिकित्सकों को सेवा नहीं मिल पाती है। ओपीडी में पहुंचे बीमार बच्चों को भर्ती किया जाता है. इसके बाद वार्ड में राउंड के दौरान विशेषज्ञ चिकित्सक उनकी जांच करते है। इस प्रक्रिया में कई बार काफी समय लग जाता है। तब तक पहले से गंभीर बच्चों की तबीयत और गड़बड़ा जाती है। इस पर उन्हें नियोनेटल केअर यूनिट(एनआईसीयू) व पीडियाट्रिक आईसीयू(पीआईसीयू) में शिफ्ट किया जाता है। तब तक काफी देर हो जाती है।



मचा हड़कंप, हरकत में आया प्रशासन
जोधपुर मेडिकल कॉलेज के शिसु रोग विभाग में एक माह में 146 मौत का मामला सामने आने पर प्रशासन में हड़कंप मच गया। हरकत में आए जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित रविवार का अवकाश होने के बावजूद उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का जायजा लेने पहुंच गए। उन्होंने वार्डों का दौरा कर वहां उपलब्ध संसाधनों सहित मेडिकल स्टाफ के बारे में जानकारी ली। साथ ही उन्होंने वहां भर्ती बच्चों के परिजनों से बात कर उनको आने वाली परेशानियों को सुना। दौरा करने के पश्चात कलेक्टर को पीडियाट्रिक आईसीयू में कुछ खामियां नजर आई। उन्होंने पीडियाट्रिक आईसीयू को नियोनेटल केअर यूनिट(एनआईसीयू) के समान विकसित करने का आदेश दिया। साथ ही कलेक्टर ने इस बारे में हाथों हाथ प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि सरकार के स्तर पर किसी प्रकार के संसाधनों की कमी नहीं आने दी जाएगी।  



ऐसे हो सकता है सुधार
इन चिकित्सकों का कहना है कि पहले स्तर से ही यदि विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में इलाज शुरू हो जाए तो मौतों की दर को काफी कम किया जा सकता है। साथ ही जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ ही संसाधन बढ़ाए जाने पर संभाग के सबसे बड़े शिशु रोग विभाग पर काम का दबाव भी कम हो जाएगा। इससे यहां भर्ती होने वाले बच्चों की सही तरीके से देखभाल भी आसानी से हो सकेगी।


 
दो साल में बढ़ गया काम का दबाव
मेडिकल कॉलेज में सात प्रोफेसर सहित कुल 18 शिशु रोग विशेषज्ञ चिकित्सक है। लेकिन काम का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। मरीजों की बढ़ती संख्या का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में पूरे साल के दौरान 28 हजार 956 बच्चों को यहां इलाज के लिए लाया गया। पांच वर्ष में इनकी संख्या में एकदम उछाल आ गया। वर्ष 2019 में यहां पर 46 हजार 26 बच्चों को भर्ती कर इलाज किया गया। भर्ती होने वाले किसी भी बच्चे की मौत सामान्य वार्ड में नहीं हुई। सभी मरने वाले बच्चे नियोनेटल केअर यूनिट(एनआईसीयू) व पीडियाट्रिक आईसीयू(पीआईसीयू) में भर्ती थे। इन दोनों स्थान पर गंभीर रूप से बीमार बच्चों को ही भर्ती किया जाता है।


वरिष्ठ डॉक्टर चला रहे है अपने अस्पताल
मेडिकल कॉलेज में सेवारत तीन वरिष्ठ डॉक्टरों ने अपने प्राइवेट अस्पताल खोल रखे है। ऐसे में ये तीनों सरकारी अस्पताल में पूरा ध्यान देने के बजाय अपने अस्पताल पर दे रहे है। शिकायतें मिलने पर राज्य सरकार ने कुछ दिन पूर्व संभागीय आयुक्त के माध्यम से इसकी जांच कराई थी। इस जांच में मेडिकल कॉलेज के 11 वरिष्ठ चिकित्सकों के अपने स्वयं के अस्पताल चलाने की पुष्टि हुई थी। इनमें से शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराग सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद शर्मा व डॉ. जेपी सोनी का नाम शामिल था। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इन सभी को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण भी मांगा था।



पर्याप्त उपकरण व संसाधन
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में 468 बेड है। मरीजों की संख्या बढ़ने पर कई बार एक बेड पर दो-दो बच्चों को लेटाया जाता है। साथ ही इसके पास पर्याप्त संख्या में उपकरण है और महज दस फीसदी को छोड़ सभी ठीक से काम कर रहे है। विभाग के पास 39 वेंटीलेटर व 92 ऑक्सीजन हुड सहित 626 विभिन्न तरह के उपकरण है। इनमें से अधिकांश दो बरस पुराने ही है।  


पांच साल में इतनी मौतें
वर्ष          कुल भर्ती        मौत
2014      28956          744
2015      30098          635
2016      37370          767
2017      36969          797
2018      46026         759
2019      47815         754


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